दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी जयंती पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने ‘सदैव अटल’ स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और महान नेता अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर दिल्ली में स्थित ‘सदैव अटल’ स्मारक पर एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उपस्थित होकर उन्हें नमन किया। यह आयोजन न केवल एक श्रद्धांजलि था, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक परंपरा और राजनीतिक संस्कृति में वाजपेयी जी के योगदान को याद करने का अवसर भी बना।
वाजपेयी जी का व्यक्तित्व और योगदान
अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के उन विरल नेताओं में से थे जिन्होंने अपने व्यक्तित्व, वक्तृत्व कला और दूरदर्शी सोच से देश की दिशा तय की। वे तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने और अपने कार्यकाल में उन्होंने भारत को वैश्विक मंच पर नई पहचान दिलाई। पोखरण परमाणु परीक्षण, कश्मीर मुद्दे पर शांति प्रयास, और आर्थिक सुधारों की दिशा में उठाए गए कदम उनके नेतृत्व की मिसाल हैं। साथ ही, वे एक संवेदनशील कवि और लेखक भी थे, जिनकी रचनाएँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
श्रद्धांजलि समारोह का महत्व
‘सदैव अटल’ स्मारक पर आयोजित इस श्रद्धांजलि समारोह में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की उपस्थिति ने इसे और भी विशेष बना दिया। यह आयोजन दर्शाता है कि वाजपेयी जी का योगदान केवल एक राजनीतिक दल तक सीमित नहीं था, बल्कि वे पूरे राष्ट्र के नेता थे। उनकी जयंती पर देश के सर्वोच्च नेतृत्व का एक साथ आना, भारतीय लोकतंत्र की उस परंपरा को मजबूत करता है जिसमें महान नेताओं को उनकी विचारधारा और कार्यों के लिए सम्मान दिया जाता है।
राष्ट्र के लिए प्रेरणा
वाजपेयी जी का जीवन युवाओं और नेताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम माना और हमेशा संवाद, सहमति और सहयोग की राजनीति की। उनके भाषणों में न केवल तर्क की शक्ति होती थी, बल्कि भावनाओं की गहराई भी होती थी। यही कारण है कि वे विपक्ष में रहते हुए भी सम्मानित किए जाते थे।
आज के संदर्भ में वाजपेयी जी की विरासत
आज जब भारत तेजी से विकास की ओर अग्रसर है, वाजपेयी जी की नीतियाँ और दृष्टिकोण और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। उन्होंने तकनीकी विकास, आधारभूत संरचना और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। उनकी सोच थी कि भारत को आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाकर आगे बढ़ना चाहिए। यही कारण है कि उनकी विरासत आज भी देश की नीतियों में झलकती है।
निष्कर्ष
दिल्ली में आयोजित इस श्रद्धांजलि समारोह ने एक बार फिर यह साबित किया कि अटल बिहारी वाजपेयी केवल एक राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि राष्ट्रपुरुष थे। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की उपस्थिति ने इस आयोजन को राष्ट्रीय महत्व प्रदान किया। वाजपेयी जी की जयंती पर दिया गया यह सम्मान आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि सच्चे नेतृत्व का मूल्यांकन केवल सत्ता से नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज के प्रति किए गए योगदान से होता है।

