भाई दूज पर केदारनाथ धाम के कपाट बंद: श्रद्धालुओं ने बाबा केदार के दर्शन के लिए जुटाई भीड़

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केदारनाथ धाम के कपाट बंद: श्रद्धालुओं ने बाबा केदार के दर्शन के लिए जुटाई भीड़

हर वर्ष की तरह इस बार भी भाई दूज के पर्व पर केदारनाथ धाम के कपाट बंद किए गए। यह अवसर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि पर्वतीय संस्कृति और परंपराओं का भी सम्मान करता है। जब कपाट बंद होते हैं, तो यह भक्तों के लिए एक विशेष भावनात्मक क्षण होता है, क्योंकि वे भगवान के दर्शन के लिए एक अंतिम अवसर का लाभ उठाते हैं। इस साल भी हजारों श्रद्धालु इस अवसर पर केदारनाथ पहुंचे, जिससे मंदिर परिसर भक्तिमय हो गया।

भाई दूज, भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित एक पावन त्योहार है। इस दिन, बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। केदारनाथ धाम में इस दिन की खासियत यह है कि भक्त सिर्फ भाई दूज का पर्व मनाने नहीं आते, बल्कि वे भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए भी आए हैं। इस बार कपाट बंद होने की पूर्वसंध्या पर शनिवार को बड़ी संख्या में भक्तों ने एकत्रित होकर बाबा केदार के दर्शन किए।

सुबह 8:30 बजे, विधि-विधान के साथ कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू हुई। इस दौरान श्रद्धालुओं का उत्साह देखने लायक था। भक्तों ने जयकारे लगाते हुए बाबा केदारनाथ के दर्शन किए और अपनी आस्था को व्यक्त किया। भक्तों की यह भीड़ इस बात का प्रमाण है कि किस प्रकार पहाड़ी क्षेत्रों की धार्मिकता और आस्था जीवित है।

केदारनाथ धाम, जो पंच केदारों में से एक है, भगवान शिव के एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है। यहां के दर्शन करने के लिए हर साल लाखों लोग आते हैं। इस बार भी भक्तों की भीड़ ने यह सिद्ध कर दिया कि श्रद्धालुओं का प्यार और भक्ति किस प्रकार समय के साथ बढ़ती जा रही है। कपाट बंद होने से पहले श्रद्धालुओं ने अपनी मन्नतें मांगी, जो कि उनके विश्वास का परिचायक है।

इस विशेष अवसर पर, भक्तों के अलावा, स्थानीय निवासियों और पुजारियों ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया। पूजा की तैयारी और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन बड़े धूमधाम से किया गया। श्रद्धालुओं ने अपने-अपने तरीकों से पूजा अर्चना की, और प्रसाद चढ़ाया। भक्तों का यह उत्साह इस बात को दर्शाता है कि भक्ति का कोई समय नहीं होता; यह हमेशा जीवंत रहता है।

बंद कपाट के बाद, केदारनाथ धाम को शीतकालीन विश्राम के लिए तैयार किया गया। श्रद्धालुओं के लिए यह एक भावनात्मक क्षण होता है, क्योंकि वे जानते हैं कि अब अगले छह महीनों तक उन्हें बाबा के दर्शन नहीं होंगे। इस समय भक्तों ने एकजुट होकर बाबा के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को व्यक्त किया, जो कि इस पर्व की असली भावना है।

भाई दूज के इस विशेष दिन ने फिर से एक बार साबित कर दिया कि धर्म और आस्था में न केवल व्यक्तिगत अनुभव है, बल्कि यह एक सामूहिक यात्रा भी है। जैसे ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद हुए, भक्तों ने अपने-अपने घरों की ओर लौटते हुए बाबा के प्रति अपनी भक्ति का एक नया अध्याय शुरू किया। इस प्रकार, भाई दूज का यह पर्व श्रद्धालुओं के लिए केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भक्ति और प्रेम का एक अद्वितीय उदाहरण बन गया।


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