भारत के खिलाफ कनाडा की दुश्मनी: ट्रूडो के पिता और इंदिरा गांधी की भिड़ंत से खालिस्तान का 42 साल का संघर्ष!

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भारत और कनाडा के बीच हाल के समय में बढ़ती तनावपूर्ण स्थिति के पीछे कई ऐतिहासिक कारक हैं। यह तनाव विशेष रूप से खालिस्तानी आंदोलन के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जो पिछले चार दशकों से अधिक समय से जारी है। कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों की बढ़ती गतिविधियाँ और भारतीय सुरक्षा के प्रति खतरों ने इस स्थिति को और जटिल बना दिया है।

ट्रूडो का परिवार और भारत

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के पिता, पीयर ट्रूडो, 1968 से 1979 और फिर 1980 से 1984 तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे। उनकी नीतियों में एक प्रमुख तत्व भारत के साथ उनके संबंधों का था। जब इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल लागू किया, तब पीयर ट्रूडो ने उनकी नीतियों का विरोध किया। इस समय के दौरान, ट्रूडो का भारत के प्रति एक अलग दृष्टिकोण था, जिसने उनकी राजनीतिक विरासत को प्रभावित किया। यह तनावपूर्ण संबंध आगे चलकर खालिस्तानी आंदोलन के प्रति कनाडा की नीति को प्रभावित करता रहा है।

खालिस्तान का संघर्ष

खालिस्तान आंदोलन का उदय 1980 के दशक में हुआ, जब सिख समुदाय ने पंजाब में अलगाव की मांग उठाई। यह मांग उस समय और बढ़ गई जब भारतीय सेना ने 1984 में स्वर्ण मंदिर पर ऑपरेशन ब्लू स्टार किया। इस ऑपरेशन के बाद, इंदिरा गांधी की हत्या ने भारत में सिखों के खिलाफ भयानक दंगों को जन्म दिया। इस स्थिति ने खालिस्तानी भावनाओं को और भड़काया, और कई सिखों ने कनाडा सहित पश्चिमी देशों में शरण ली।

कनाडा में बसे सिखों ने खालिस्तान के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्र की मांग को मजबूत किया। यहां की राजनीतिक वातावरण ने उन्हें एक मंच प्रदान किया, जहाँ वे अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त कर सकते थे। हालांकि, यह स्थिति भारत के लिए चिंता का विषय बन गई, क्योंकि ये गतिविधियाँ भारतीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रही थीं।

कनाडा की मौजूदा स्थिति

हाल के वर्षों में, कनाडा ने खालिस्तानी आंदोलन के समर्थकों को राजनीतिक संरक्षण देने के आरोपों का सामना किया है। भारतीय अधिकारियों ने कई बार कनाडा से आग्रह किया है कि वह इस समस्या को गंभीरता से ले। जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने कभी-कभी इन मुद्दों पर चुप्पी साधी है, जिससे भारत और कनाडा के बीच संबंधों में और भी खटास आई है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य

भारत और कनाडा के बीच के रिश्ते केवल दो देशों तक सीमित नहीं हैं। यह वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है, खासकर जब हम देखें कि पश्चिमी देशों में खालिस्तानी समर्थकों की गतिविधियाँ कैसे बढ़ रही हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या कनाडा अपने सिख समुदाय के प्रति संवेदनशीलता के नाम पर भारत के खिलाफ खड़ा हो रहा है।

निष्कर्ष

भारत और कनाडा के बीच यह तनाव भले ही ऐतिहासिक जड़ों से जुड़ा हो, लेकिन यह वर्तमान राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी गहरा प्रभाव डालता है। दोनों देशों को अपने संबंधों को सुधारने के लिए एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की आवश्यकता है। खालिस्तानी आंदोलन का यह संघर्ष केवल एक क्षेत्रीय समस्या नहीं है, बल्कि यह वैश्विक सुरक्षा, प्रवासन और राजनीतिक पहचान के सवालों से भी जुड़ा है। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए बातचीत और समझदारी आवश्यक है, ताकि भविष्य में भारत और कनाडा के संबंध मजबूत और स्थायी बन सकें।


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