ममता का मुश्किल मोड़: जिस सहारे बंगाल छोड़कर इंडिया ब्लॉक आईं, उसी से बगावत, अब घर या देश?

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 2024 के आम चुनावों के लिए इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनने का निर्णय लिया था, यह फैसला उनके राजनीतिक भविष्य के लिए एक अहम मोड़ था। ममता बनर्जी, जो अपनी राज्य सरकार और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की मजबूत नेता हैं, ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी उपस्थिति को और सशक्त बनाने के लिए इंडिया ब्लॉक का हिस्सा बनने का रास्ता अपनाया था। हालांकि, अब यही गठबंधन उनके लिए एक मुश्किल चुनौती बन चुका है, क्योंकि वही इंडिया ब्लॉक, जिसके सहारे ममता ने बंगाल छोड़कर राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा था, अब उनके खिलाफ बगावत कर रहा है।

ममता बनर्जी ने जब 2021 के विधानसभा चुनावों में बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ एक महत्वपूर्ण संघर्ष किया था, तो उन्होंने खुद को “एकला चलो रे” की राजनीति से हटकर एक बड़ा सहयोगी बनते हुए देखा। उन्होंने कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर इंडिया गठबंधन में कदम रखा। उनका उद्देश्य था कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक साझा विपक्ष तैयार करें और बंगाल से लेकर देशभर में बीजेपी को हराया जाए।

लेकिन अब ममता बनर्जी के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या इंडिया ब्लॉक में उनकी जगह सुरक्षित है? ताजा घटनाक्रमों में यह देखा गया कि ममता बनर्जी और उनके समर्थकों के साथ इंडिया ब्लॉक में शामिल दलों के बीच मतभेद बढ़ गए हैं। कांग्रेस और अन्य पार्टियां ममता के नेतृत्व को लेकर सवाल उठा रही हैं। इस स्थिति ने ममता के लिए चुनौती पैदा कर दी है, क्योंकि उन्हें अब यह तय करना है कि वे अपने घर, यानी बंगाल की राजनीति में लौटकर तृणमूल कांग्रेस को मजबूत करें, या फिर देशभर में विपक्षी एकता के प्रयास में शामिल रहकर इस संघर्ष को आगे बढ़ाएं।

ममता के सामने यह मुश्किल इसलिए भी है क्योंकि बंगाल में उनका राजनीतिक आधार मजबूत है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया ब्लॉक में एकता की कमी उन्हें कमजोर बना रही है। दूसरी ओर, वह खुद को इस स्थिति में पा रही हैं जहां एक ओर उनका राज्य संकट में नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में अपनी स्थिति को बचाए रखना कठिन हो रहा है।

ममता बनर्जी के लिए यह निर्णय आसान नहीं होगा क्योंकि वह जानती हैं कि यदि वह इंडिया ब्लॉक से अलग होती हैं, तो राष्ट्रीय राजनीति में उनकी ताकत कमजोर पड़ सकती है। वहीं, अगर वह घर (बंगाल) की राजनीति पर ध्यान केंद्रित करती हैं, तो यह राष्ट्रीय स्तर पर उनके प्रभाव को सीमित कर सकता है।

अब ममता को यह सवाल जवाब देना होगा कि वे क्या चुनेंगी – बंगाल में अपनी मजबूत स्थिति को बरकरार रखते हुए देश की राजनीति में अपने कदमों को मजबूती से रखेंगी, या फिर वह इंडिया ब्लॉक के भीतर चल रही बगावत और मतभेदों से उबरकर खुद को एक मजबूत राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित करेंगी। यह राजनीतिक संघर्ष ममता के लिए एक नया मोड़ साबित हो सकता है, जो उनके भविष्य का निर्धारण करेगा।


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