दुर्गा पूजा की तैयारियाँ जोरों पर — भक्ति और आस्था से गढ़ी जा रही हैं मां दुर्गा की प्रतिमाएं
दुर्गा पूजा का पर्व नज़दीक आते ही देशभर में एक अलौकिक ऊर्जा और उल्लास का माहौल बन गया है। बंगाल से लेकर बिहार, झारखंड, ओडिशा और दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों तक, दुर्गा पूजा की तैयारियाँ चरम पर हैं। पंडालों की भव्यता, मां दुर्गा की मूर्तियों की कलात्मकता, और भक्तों की श्रद्धा—सब मिलकर इस पर्व को एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का रूप दे रहे हैं।
मिट्टी से जन्म लेती आस्था
मां दुर्गा की मूर्तियों का निर्माण इन दिनों पूरे जोर-शोर से चल रहा है। कारीगर गंगा नदी के तट से लाई गई पवित्र मिट्टी से प्रतिमाएं बना रहे हैं। मान्यता है कि यह मिट्टी “नवकुण्डिका” कहलाती है और इसे उस स्थान से लिया जाता है जहाँ वेश्याएं रहती हैं — ताकि समाज के हर वर्ग की भागीदारी इस महापर्व में हो सके। यह प्रतीक है समावेशिता का, जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
कलाकारी और भावनाओं का संगम
इन मूर्तियों को बनाते समय कारीगर सिर्फ मिट्टी और रंग का प्रयोग नहीं करते, बल्कि वे अपनी भावनाएं, परंपराएं और सांस्कृतिक चेतना भी उसमें समाहित करते हैं। कोलकाता के कुम्हार टोली से लेकर वाराणसी और पटना के घाटों तक, मूर्तियों को गढ़ने का काम दिन-रात चल रहा है। मां के चेहरे पर उभरती कोमल मुस्कान, उनकी दसों भुजाएं, और महिषासुर पर विजयी मुद्रा—सब कुछ इस कला को जीवंत बना देता है।
पंडालों में दिखेगा नवाचार
इस वर्ष कई पूजा समितियों ने पर्यावरण के प्रति जागरूकता दिखाते हुए इको-फ्रेंडली मूर्तियों का उपयोग किया है। बांस, कागज, और मिट्टी से बनी मूर्तियां जल में आसानी से विलीन हो जाती हैं, जिससे जल प्रदूषण कम होता है। इसके साथ-साथ पंडालों की थीम में भी नवीनता आई है। कहीं राममंदिर की प्रतिकृति दिखाई जाएगी, तो कहीं महिला सशक्तिकरण को समर्पित थीम होगी।
भक्ति और सामूहिकता का पर्व
दुर्गा पूजा केवल धार्मिक उत्सव नहीं है, यह सामाजिक एकता, सांस्कृतिक प्रदर्शन और मानवीय संबंधों का भी उत्सव है। लोग नवरात्रि के दौरान उपवास रखते हैं, आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, और मां दुर्गा से शक्ति, समृद्धि और रक्षा का आशीर्वाद मांगते हैं। शाम को जब पूरे शहर में ढाक बजती है, आरती होती है, और पंडालों में भीड़ उमड़ती है, तो हर व्यक्ति इस दिव्यता का हिस्सा बन जाता है।
नारी शक्ति का प्रतीक
मां दुर्गा केवल एक देवी नहीं, बल्कि नारी शक्ति का प्रतीक हैं। उनका नौ रूपों में पूजन इस बात का संदेश देता है कि हर महिला में देवी का वास है। आज के समय में यह पूजा नारी सम्मान और सशक्तिकरण की दिशा में एक सांस्कृतिक प्रेरणा बन चुकी है।
निष्कर्ष
दुर्गा पूजा की यह भक्ति-भावना, कला और आस्था से ओतप्रोत तैयारियाँ सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना का उत्सव हैं। माँ दुर्गा के स्वागत में देश एक बार फिर आस्था के रंगों से सराबोर हो रहा है।