बिहार में टल सकता है जमीनों के सर्वे का काम, लोगों के गुस्से को देख बैकफुट पर जा सकती है डबल इंजन सरकार

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बिहार में इन दिनों एक महत्वपूर्ण मुद्दा गर्मा रहा है: राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित जमीनों के सर्वे का काम। सरकार ने हाल ही में यह घोषणा की थी कि राज्य भर में भूमि रिकॉर्ड को अद्यतन और सही किया जाएगा, जिससे जमीनों के स्वामित्व और विवादों में पारदर्शिता लाने का लक्ष्य था। हालांकि, इस पहल के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया काफी नकारात्मक रही है, और अब यह संभावना जताई जा रही है कि डबल इंजन सरकार इस फैसले पर फिर से विचार कर सकती है।

जमीनों के सर्वे के प्रस्तावित कार्य को लेकर स्थानीय जनता और किसानों ने जबरदस्त विरोध जताया है। उनका कहना है कि इस सर्वे के दौरान कई ऐसे मुद्दे उठ सकते हैं, जो उनकी मौजूदा जमीनों के स्वामित्व को प्रभावित कर सकते हैं। कई इलाकों में किसानों ने डर जताया है कि सर्वे के दौरान उनकी जमीनों की गलत फहमी से जुड़ी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे उनकी आजीविका पर संकट आ सकता है। इसके अलावा, सर्वे की प्रक्रिया के दौरान सरकारी अधिकारियों द्वारा अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोप भी लग रहे हैं।

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सरकार की डबल इंजन नीति, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर एक ही पार्टी की सरकार होती है, इस समय कठिन स्थिति में है। यह नीति बिहार में विकास और योजनाओं की तेजी से कार्यान्वयन के लिए सकारात्मक मानी जाती है, लेकिन वर्तमान स्थिति में यह नीति बैकफुट पर जा सकती है। सरकार को लोगों के गुस्से और विरोध का सामना करना पड़ रहा है, और यह दिखता है कि आगामी चुनावों को देखते हुए सरकार की योजना में बदलाव हो सकते हैं।

विरोध प्रदर्शन और जनसभाओं के दौरान स्थानीय नेताओं और प्रतिनिधियों ने भी सरकार के प्रस्तावित सर्वे के खिलाफ आवाज उठाई है। उनका कहना है कि इस सर्वे को स्थगित किया जाना चाहिए और सरकार को पहले किसानों और स्थानीय लोगों की चिंताओं को सुनना चाहिए। इसके अलावा, कई लोगों ने यह भी सुझाव दिया है कि सर्वे की प्रक्रिया को पारदर्शी और प्रभावी तरीके से लागू किया जाए, जिससे लोगों का भरोसा बना रहे।

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इस स्थिति को देखते हुए, डबल इंजन सरकार को अपने कदम वापस खींचने का विचार आ सकता है। सरकार के लिए यह एक कठिन निर्णय होगा, क्योंकि यदि वह अपने प्रस्तावित सर्वे को स्थगित करती है, तो यह उसके प्रशासनिक प्रभाव और योजना की साख पर सवाल उठा सकता है। दूसरी ओर, यदि सरकार विरोध को नजरअंदाज करती है, तो यह आम जनता के बीच असंतोष और राजनीतिक समस्याओं को जन्म दे सकता है।

समाप्ति में, बिहार में जमीनों के सर्वे के मुद्दे पर सरकार की अगली कार्रवाई पर सभी की निगाहें हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या डबल इंजन सरकार लोगों की चिंताओं को गंभीरता से लेती है और अपनी नीति में बदलाव करती है, या फिर वह अपने प्रस्तावित कार्य को जारी रखती है। इस मुद्दे पर सरकार की अगली चाल ही तय करेगी कि यह विवाद किस दिशा में जाएगा और इसके परिणाम किस प्रकार के होंगे।

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