महाकुंभ प्रयागराज 2025: सुधा मूर्ति जी की पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी संग आध्यात्मिक भेंटवार्ता में वैदिक संस्कृति की झलक
प्रयागराज का महाकुंभ मेला 2025 में एक बार फिर भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की दिव्यता का अद्वितीय संगम बनकर उभरा है। इस वर्ष के महाकुंभ में श्रद्धालुओं के साथ-साथ समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति भी इस पवित्र आयोजन में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे। एक विशेष पल तब आया जब भारत की प्रख्यात समाज सेविका और इंफोसिस (Infosys) की सह-संस्थापक श्रीमती सुधा मूर्ति जी ने महाकुंभ के प्रभु प्रेमी संघ कुम्भ शिविर में पहुँचकर एक आध्यात्मिक भेंटवार्ता की। इस अवसर पर उनका मार्गदर्शन पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी से हुआ, जो जूनापीठाधीश्वर और आचार्यमहामण्डलेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
आध्यात्मिक भेंटवार्ता का महत्व
महाकुंभ के इस विशेष क्षण में, जब सुधा मूर्ति जी ने पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी से भेंट की, तो यह एक गहरे आध्यात्मिक संवाद का रूप लिया। सुधा मूर्ति जी, जो स्वयं भारतीय संस्कृति, परंपराओं और मानवता के प्रति अपनी गहरी निष्ठा के लिए जानी जाती हैं, ने इस अवसर पर धर्म, समाज सेवा और संस्कारों के महत्व पर प्रकाश डाला। स्वामी अवधेशानंद गिरि जी की उपस्थिति में यह भेंटवार्ता भारतीय वेदों और सनातन धर्म की गहरी धारा से जुड़ी रही, जो भारतीय समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर है।
वैदिक संस्कृति की झलक
स्वामी अवधेशानंद गिरि जी के साथ इस आध्यात्मिक वार्ता में वैदिक संस्कृति की पवित्रता और उसकी अनमोल धरोहर का उल्लेख विशेष रूप से हुआ। स्वामी जी ने बताया कि महाकुंभ का आयोजन सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह भारत की प्राचीन संस्कृति, ज्ञान और विज्ञान का संगम है। इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ें और उसकी विविधता को समझना बहुत आवश्यक है। सुधा मूर्ति जी ने स्वामी जी से आशीर्वाद प्राप्त करते हुए कहा कि इस महाकुंभ का आयोजन न केवल भौतिक रूप से, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी हमें जोड़ता है।
समाज सेवा और संस्कारों का महत्व
भेंटवार्ता के दौरान सुधा मूर्ति जी ने समाज सेवा और संस्कारों के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यदि हम अपने समाज में सच्ची सेवा और प्रेम का भाव रखते हैं तो हम अपने जीवन को एक सही दिशा में ले जा सकते हैं। स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने भी यह बताया कि संस्कारों से ही समाज में शांति और समृद्धि आ सकती है, और यही वेदों की सिखावन है।
आध्यात्मिक जागृति का संदेश
यह भेंटवार्ता महाकुंभ में एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में उभरी, जो लोगों को आध्यात्मिक जागृति का संदेश दे रही है। भारत के वेद, उपनिषद, और शास्त्रों की अद्भुत गूढ़ता को आज की दुनिया में समझना और अपनाना बहुत महत्वपूर्ण है। इस भेंटवार्ता ने भारतीय समाज को यह सिखाया कि हमारी संस्कृति और आध्यात्मिकता केवल अतीत का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह वर्तमान और भविष्य के लिए भी प्रेरणादायक है।
निष्कर्ष
महाकुंभ प्रयागराज 2025 में सुधा मूर्ति जी और पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी के बीच आध्यात्मिक भेंटवार्ता ने भारतीय संस्कृति और वैदिक सनातन धर्म की अद्वितीय झलक प्रस्तुत की। इस दिव्य संवाद ने हमें यह समझने का अवसर दिया कि हमारी संस्कृति, आस्थाएं और समाज सेवा का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। महाकुंभ का यह आयोजन हमें हमारे सांस्कृतिक धरोहर की ओर लौटने और उसे सम्मान देने का अवसर प्रदान करता है, जिससे हम अपनी जीवन यात्रा को एक नई दिशा दे सकते हैं।

