दिल्ली हाईकोर्ट ने डॉक्टरों को साफ-सुथरी पर्ची लिखने की सख्त हिदायत, मरीजों के अधिकार की रक्षा
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में डॉक्टरों को साफ-सुथरी और पढ़ने योग्य दवा पर्ची लिखने के संबंध में सख्त निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि मरीजों का यह मौलिक अधिकार है कि वे पूरी तरह स्पष्ट रूप से जान सकें कि उन्हें कौन-सी बीमारी का इलाज दिया जा रहा है और डॉक्टर ने कौन-सी दवा लिखी है। इस आदेश के पीछे यह तथ्य है कि अक्सर डॉक्टरों की लिखावट इतनी अस्पष्ट होती है कि न केवल मरीज बल्कि फार्मासिस्ट भी उसे समझने में असमर्थ रहते हैं, जिससे दवाओं की गलत बिक्री या गलत इलाज की संभावना बढ़ जाती है।
यह मुद्दा हमारे देश में कई वर्षों से गंभीर बना हुआ है। डॉक्टरों की कठिन और खराब लिखावट के कारण मरीजों को सही दवा न मिलने या गलत दवा मिलने की घटनाएँ लगातार सामने आती रही हैं। कई बार इसके चलते मरीजों की सेहत को गंभीर नुकसान भी होता है। इसी समस्या को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अब इसे गंभीरता से लिया है और डॉक्टरों तथा संबंधित चिकित्सा संस्थानों को स्पष्ट और जिम्मेदारी से पर्ची लिखने के लिए बाध्य किया है।
कोर्ट ने इस संदर्भ में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिया है कि वे जल्द से जल्द इस समस्या के समाधान हेतु प्रभावी दिशानिर्देश बनाएं और सभी डॉक्टरों के लिए पर्ची लिखने के नियम निर्धारित करें। इन नियमों के तहत डॉक्टरों को साफ-सुथरी, स्पष्ट और पढ़ने योग्य दवा पर्ची देना अनिवार्य होगा। साथ ही, डिजिटल पर्ची के इस्तेमाल को भी बढ़ावा देने के सुझाव दिए गए हैं ताकि हाथ से लिखी गई पर्चियों की समस्या से बचा जा सके।
मरीजों की सुरक्षा और पारदर्शिता के हित में यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। एक मरीज के लिए यह जानना कि वह किस बीमारी से पीड़ित है और उसके लिए कौन-सी दवा निर्धारित की गई है, उसका एक संवैधानिक अधिकार है। इसके बिना मरीज के इलाज की प्रक्रिया अधूरी और असुरक्षित मानी जाती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि डॉक्टरों को इस आदेश को गंभीरता से लेना चाहिए और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए पर्ची लेखन में सुधार लाना चाहिए। इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा संस्थान भी इस दिशा में आवश्यक कदम उठाएं ताकि डॉक्टरों को इसके प्रति जागरूक किया जा सके और उन्हें पर्ची लेखन के मानक समझाए जा सकें।
डिजिटल युग में जहां हर क्षेत्र में टेक्नोलॉजी का प्रयोग बढ़ रहा है, वहीं चिकित्सा क्षेत्र में भी इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड (EMR) और डिजिटल पर्ची का विस्तार मरीजों की सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम हो सकता है। इससे न केवल लिखावट की समस्या दूर होगी, बल्कि दवाओं के रिकॉर्ड को बेहतर तरीके से ट्रैक भी किया जा सकेगा।
इस आदेश को लेकर मरीजों में काफी संतोष है। वे मानते हैं कि इससे उनकी दवाओं की गलत सप्लाई और इलाज में हो सकने वाली लापरवाही को काफी हद तक रोका जा सकेगा। वहीं, डॉक्टरों से भी उम्मीद की जा रही है कि वे इस दिशा में अपने स्तर पर सुधार करेंगे और मरीजों को बेहतर सुविधा देंगे।
अंततः, दिल्ली हाईकोर्ट का यह आदेश एक सकारात्मक पहल है जो देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ावा देगा। यह मरीजों के अधिकारों की रक्षा करने के साथ-साथ बेहतर चिकित्सा सेवा सुनिश्चित करने में भी सहायक सिद्ध होगा।